कंप्यूटर का इतिहास (History of Computer)
एनिएक कंप्यूटर के प्रोग्राम में परिवर्तन कठिन था। इससे निपटने के लिए वान न्यूमेन (Van Neumann) ने संग्रहित प्रोग्राम (Stored Program) की अवधारणा दी तथा इडवैक (EDVAC) का विकास किया।
यह प्रथम कंप्यूटर था जिसका उपयोग व्यापारिक और अन्य सामान्य कार्यों के लिए किया गया। पहला व्यापारिक कंप्यूटर यूनीवैक-I (UNIVAC-I) का निर्माण 1954 में जीईसी (GEC – General Electric Corporation) ने किया।
सन 1970 में इंटेल कंपनी द्वारा दुनिया का पहला माइक्रो प्रोसेसर “इंटेल – 4004” के निर्माण ने कंप्यूटर क्षेत्र में क्रांति ला दी। इससे छोटे आकार के कंप्यूटर का निर्माण संभव हुआ जिन्हें माइक्रो कंप्यूटर कहा गया। इंटेल, पेंटीयम, सेलेरो तथा एएमडी वर्तमान में कुछ प्रमुख माइक्रो प्रोसेसर उत्पादक ब्रांड है।
कंप्यूटर की पीढ़ियां (Generation of Computer)
हार्डवेयर के उपयोग के आधार पर कंप्यूटर को विभिन्न पीढ़ियों (Generations) में बांटा गया हैं :-
>> फर्स्ट जनरेशन के कंप्यूटर के निर्माण में वैक्यूम ट्यूब (Vacuum Tubes) का प्रयोग किया गया।
>> फर्स्ट जनरेशन के कंप्यूटर के सॉफ्टवेयर को Machine Language और Low Level Programming Language में तैयार किया जाता था।
>> डाटा और सॉफ्टवेयर के स्टोरेज के लिए पंचकार्ड (Punch Card) और पेपर टेप (Paper Tape) का प्रयोग किया गया था।
>> पहली पीढ़ी के कंप्यूटर का उपयोग खासतौर पर वैज्ञानिक अनुसंधान तथा सैन्य कार्यों में किया जाता था।
>> फर्स्ट जनरेशन के कंप्यूटर आकार में बहुत बड़ी और अधिक ऊर्जा खपत करने वाले होते थे।
>> इन कंप्यूटर की स्टोरेज कैपेसिटी बहुत कम तथा गति (Speed) मंद होती थी। और इनमें त्रुटि (Error) होने की संभावना भी अधिक रहती थी। अतः इनका संचालन एक खर्चीला काम था।
>> Vacuum Tube द्वारा अधिक उर्जा उत्पन्न होने के कारण इन्हें वातानुकूलित वातावरण में रखना पड़ता है।
>> ENIAC, UNIVAC और IBM के MARK-I इसके उदाहरण हैं।
>> 1952 मैं डॉक्टर ग्रेस हॉपर द्वारा असेंबली लैंग्वेज (Assembly Language) के आविष्कार से प्रोग्राम लिखना और ज्यादा आसान हो गया।
>> दूसरी पीढ़ी के कंप्यूटरों में Vacuum Tubes की जगह सेमीकंडक्टर ट्रांजिस्टर (Semiconductor Transistor) का प्रयोग किया गया जो अपेक्षा से हल्के, छोटे और कम बिजली खपत करने वाले थे।
>> सेकंड जनरेशन कंप्यूटर्स के सॉफ्टवेयर को हाई लेवल असेंबली लैंग्वेज (High Level Assembly Language) मैं तैयार किया जाता था।
>> Assembly Language में प्रोग्राम लिखने के लिए निमानिक्स कॉड (Mnemonics Code) का प्रयोग किया जाता है जो याद रखने में सरल होते हैं। अतः असेंबली भाषा में सॉफ्टवेयर तैयार करना आसान होता है।
>> डाटा और सॉफ्टवेयर के स्टोरेज के लिए मेमोरी के रूप में Magnetic Storage Devices जैसे – Magnetic Tape, Magnetic Disk, Etc. का प्रयोग आरंभ हुआ। इससे स्टोरेज कैपेसिटी और कंप्यूटर की स्पीड में वृद्धि हुई।
>> कंप्यूटर के प्रोसेस करने की स्पीड तेज हुई जिसे अब माइक्रो सेकंड (Micro Second) मैं मापा जाता था।
>> बिजनेस और इंडस्ट्रीज में कंप्यूटर का प्रयोग आरंभ हुआ।
>> बैच ऑपरेटिंग सिस्टम (Batch Operating System) को आरंभ किया गया।
>> सॉफ्टवेयर में कोबोल (COBOL – Common Business Oriented Language) और फोरट्रान (FORTRAN – Formula Translation) जैसे हाई लेवल लैंग्वेज का विकास आईबीएम (IBM) द्वारा किया। इससे प्रोग्राम लिखना और आसान हो गया।
>> तीसरी पीढ़ी के कंप्यूटरों में ट्रांजिस्टर की जगह इंटीग्रेटेड सर्किट चिप (IC – Integrated Circuit Chip) का प्रयोग स्टार्ट हुआ। SSI (Small Scale Integration) और बाद में MSI (Medium Scale Integration) का विकास हुआ जिसमें एक इंटीग्रेटेड सर्किट चिप में सैकड़ों इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे – Transistor, Resistor, Capacitor का निर्माण संभव हुआ।
>> इनपुट और आउटपुट डिवाइस के रूप में कीबोर्ड तथा मॉनिटर का प्रयोग प्रचलित हुआ। कीबोर्ड के प्रयोग से कंप्यूटर में डाटा तथा निर्देश डालना आसान हो गया।
>> मैग्नेटिक टेप तथा डिस्क के स्टोरेज कैपेसिटी में वृद्धि हुई। सेमीकंडक्टर स्टोरेज डिवाइसेज का विकास हुआ। रैम (RAM – Random Access Memory) के विकास से कंप्यूटर की स्पीड में वृद्धि हुई।
>> कंप्यूटर का कैलकुलेशन टाइम नैनो सेकंड (ns) में मापा जाने लगा। इसे कंप्यूटर के कार्य क्षमता में तेजी आई।
>> कंप्यूटर का बिज़नेस यूज और पर्सनल यूज यहां से स्टार्ट हुआ।
>> High Level Language में PL/1, PASCAL और BASIC का विकास हुआ।
>> टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Time Sharing Operating System) का विकास हुआ।
>> हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर की अलग-अलग बिक्री प्रारंभ हुई। इससे यूजर्स अपने आवश्यकता अनुसार सॉफ्टवेयर या हार्डवेयर ले सकते थे।
>> 1965 में DEC – Digital Equipment Corporation द्वारा प्रथम व्यवसायिक मिनी कंप्यूटर पीडीपी 8 (Programmed Data Processor – 8) का विकास किया गया।
>> चौथी पीढ़ी के कंप्यूटरों में माइक्रोप्रोसेसर का प्रयोग किया गया। LSI (Large Scale Integration) और VLSI (Very Large Scale Integration) से माइक्रो प्रोसेसर की क्षमता में वृद्धि हुई।
>> कंप्यूटर का कैलकुलेशन टाइम पिको सेकंड (Pico Second) (ps) में मापा जाने लगा।
>> माइक्रोप्रोसेसर के इस्तेमाल से अत्यंत छोटा और हाथ में लेकर जाने योग्य कंप्यूटरों का विकास संभव हुआ।
>> एक साथ कई कार्यों को संपन्न करने के लिए कंप्यूटर को मल्टीटास्किंग प्रयोग करने योग्य बनाया गया। जिस कारण कंप्यूटर का प्रयोग एक साथ कई कार्यों को संपन्न करने में किया जाने लगा।
>> माइक्रो प्रोसेसर का विकास एम ई हौफ ने 1971 में किया। इससे पर्सनल कंप्यूटर (PC) का विकास हुआ।
>> मैग्नेटिक डिस्क और मैग्नेटिक टेप की जगह सेमीकंडक्टर (Semi Conductor) मेमोरी ने ले लिया। रैम (RAM) की क्षमता में वृद्धि से कार्य अत्यंत तीव्र हो गया।
>> हाई स्पीड वाले कंप्यूटर नेटवर्क जैसे – LAN और WAN का विकास हुआ।
>> Parallel Computing और Multimedia का प्रचलन प्रारंभ हुआ।
>> 1981 में आईबीएम (IBM) ने माइक्रो कंप्यूटर का विकास किया जिसे पीसी (PC – Personal Computer) कहां गया।
>> सॉफ्टवेयर में ग्राफिकल यूजर इंटरफेस (GUI – Graphical User Interface) के विकास ने कंप्यूटर के उपयोग को सरल बना दिया।
>> ऑपरेटिंग सिस्टम में एम.एस. डॉस (MS-DOS), माइक्रोसॉफ्ट विंडोज (MS-Windows) और एप्पल ऑपरेटिंग सिस्टम (Apple OS) का विकास हुआ।
>> हाई लेवल लैंग्वेज में “C” Language का विकास हुआ जिसमें प्रोग्रामिंग सरल किया गया।
>> ULSI (Ultra Large Scale Integration) और SLSI (Super Large Scale Integration) की शुरुआत हुई जिससे करोड़ों इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से युक्त माइक्रोप्रोसेसर चिप का विकास हुआ।
>> इससे अत्यंत छोटे और हाथ में लेकर चलने योग्य कंप्यूटरों का विकास हुआ जिनकी कैलकुलेशन कैपेसिटी बहुत ही ज्यादा तेज है।
>> मल्टीमीडिया और एनिमेशन के कारण कंप्यूटर का शिक्षा तथा मनोरंजन इत्यादि के लिए भरपूर उपयोग किया जाने लगा।
>> इंटरनेट और सोशल मीडिया के विकास ने सूचनाओं के आदान-प्रदान तथा एक दूसरे से संपर्क करने के तरीकों में क्रांतिकारी परिवर्तन संभव बनाया।
>> स्टोरेज के लिए ऑप्टिकल डिस्क (Optical Disk) जैसे – CD, DVD, Blu-Ray Disc का विकास हुआ जिनकी स्टोरेज कैपेसिटी बहुत ही हाई लेवल की थी।
>> दो प्रोसेसर को एक साथ जोड़कर और पैरेलल प्रोसेसिंग द्वारा कंप्यूटर प्रोसेसर की स्पीड को अत्यंत तीव्र बनाया गया।
>> नेटवर्किंग के क्षेत्र में इंटरनेट, ईमेल (e-mail) और डब्लू डब्लू डब्लू (www) का विकास हुआ।
>> सूचना प्रौद्योगिकी (IT – Information Technology) और सूचना राज्यमार्ग (IH- Information Highway) की अवधारणा का विकास हुआ।
>> मैं कंप्यूटर में कृत्रिम ज्ञान क्षमता (Artificial Intelligence) डालने का प्रयास चल रहा है ताकि कंप्यूटर परिस्थितियों के अनुकूल स्वयं निर्णय ले सके। आवाज को पहचानने (Speech Recognition) तथा रोबोट निर्माण (Robotics) में इसका प्रयोग किया जा रहा है।
>> Magnetic Bubble Memory के प्रयोग से स्टोरेज कैपेसिटी में वृद्धि हुई।
>> Portable PC और Desktop PC ने कंप्यूटर को जीवन के लगभग प्रत्येक क्षेत्र से जोड़ दिया है।
Generation | Hardware | Software | Memory | Speed | Example |
---|---|---|---|---|---|
First Generation (1942-55) | Vacuum Tubes | Machine Language, Binary (0,1), Store Program | Punch Card, Paper Tape | Milisecond (ms) | ENIAC, EDVAC, UNIVAC-1 |
Second Generation (1956-64) | Transistor | High Level Assembly Language, Batch OS | Magnetic Memory, Magnetic Tape,Magnetic Disk | Microsecond | IBM-1401, UNIVAC PDP-8 |
Third Generation (1965-75) | Integrated Chip (IC), SSI, MSI | Standardization of High Level Language, Time Sharing OS | Magnetic Storage Capacity | Nanosecond (ns) | IBM-360, PDP-11 |
Fourth Generation (1976-89)
|
Micro Processor, VLSI, Personal Computer | Graphic User Interface (GUI), UNIX, “C” Language | Semiconductor | Pico Second | IBM PC, Apple PC |
Fifth Generation (1990-Till Now) | ULSI, SLSI, Notebook, Laptop | Internet, Multimedia | Optical Disk, Virtual Memory | …. | IBM Notebook, Pentium PC |
>> नैनो कंप्यूटर (Nano Computer)
>> क्वांटम कंप्यूटर (Quantum Computer)
बिजली के किरणों से निकलने वाली ऊर्जा इलेक्ट्रॉन की उपस्थिति के कारण होती है। यह इलेक्ट्रॉन अपने कक्ष में तेजी से घूमती रहती है। इस कारण इन्हें एक साथ 1 और 0 की स्थिति में गिना जा सकता है। इस क्षमता का इस्तेमाल कर मानव मस्तिष्क से भी तेज कार्य करने वाले कंप्यूटर के विकास का प्रयास चल रहा है। आपको बता दें कि इस प्रकार के कंप्यूटर में पदार्थ के Quantum Principles का उपयोग किया जाता है। जनरल कंप्यूटर में मेमोरी को बिट में मापा जाता है, जबकि क्वांटम कंप्यूटर में इसे क्यूबिट (Qubit – Quantum Bit) में मापा जाता है।
>> डीएनए कंप्यूटर (DNA Computer)
इसमें जैविक पदार्थ, जैसे डीएनए (DNA) या प्रोटीन (Protein) का प्रयोग करके डाटा को संरक्षित और प्रोसेस किया जा सकता है। इसे बायो कंप्यूटर (Bio Computer) भी कहा जाता है।
कार्य पद्धति के आधार पर वर्गीकरण (Classification of Working Technology)
तकनीक के आधार पर कंप्यूटर को तीन प्रकार में बांटा जा सकता है :
i) एनालॉग कंप्यूटर (Analog Computer)
ii) डिजिटल कंप्यूटर (Digital Computer)
iii) हाइब्रिड कंप्यूटर (Hybrid Computer)
हाइब्रिड यानी दोनों का जोड़, हाइब्रिड कंप्यूटर में एनालॉग कंप्यूटर और डिजिटल कंप्यूटर दोनों के गुण विधमान होते हैं। ये अनेक गुणों से युक्त होते हैं। इसलिए इन्हें हाइब्रिड कंप्यूटर कहा जाता हैं। एक उदहारण से समझिये :- जब कंप्यूटर की एनालॉग डिवाइस किसी रोगी के लक्षणों जैसे तापमान, या रक्तचाप आदि, को मापती हैं तो ये मापन के बाद में डिजिटल डिवाइस के द्वारा अंको में बदल डी जाती हैं। इस प्रकार से किसी रोगी के स्वास्थ्य में आये उतार चढ़ाव का सही पता चल जाता हैं।
आकार और कार्य के आधार पर कंप्यूटर का वर्गीकरण (Classification of Computer According to Size & Work)
i) सुपर कंप्यूटर (Super Computer)
सुपर कंप्यूटर, अन्य सभी श्रेणियों के कंप्यूटर की तुलना में सबसे बड़े आकार में होते हैं। इतना ही नहीं, सबसे अधिक संग्रह क्षमता वाले और सबसे अधिक गति (High Speed) वाले कंप्यूटर होते हैं। इन कंप्यूटर्स में एक साथ कई CPU समांतर क्रम से लगाए जाते हैं, और कार्य करते हैं। इस प्रक्रिया को Parallel Processing कहते हैं। इस प्रकार के कंप्यूटर को बिल्कुल अलग सिद्धांत के साथ तैयार किया जाता हैं, जिसे नॉन – वों न्यूमेन (Non – Von Neumann Concept) सिद्धांत कहते हैं।
सुपर कंप्यूटर का आकार एक सामान्य कमरे के बराबर होता हैं। इस प्रकार के कंप्यूटर का प्रयोग बड़े वैज्ञानिक और शोध प्रयोगशालाओं में शोध कार्यों के लिए किया जाता हैं। सुपर कंप्यूटर में कई सारे ALU (Arithmetic Logic Unit), CPU (Central Processing Unit) का भाग होता हैं। इसमें हर एक ALU का एक निश्चित कार्य होता हैं।
सुपर कंप्यूटर, सभी प्रकार के जटिल कार्यों को करने में प्रयोग किया जाता था। जैसे कि :- मौसम की भविष्यवाणी, अन्तरिक्ष यात्रा के लिए अन्तरिक्ष यात्रियों को अन्तरिक्ष में भोजन, उच्च गुणवत्ता की एनीमेशन का निर्माण करना। इन सभी कार्यों में की जाने वाली गणना और प्रक्रिया कठिन और उच्चकोटि की सुध्दता वाली होती हैं जिन्हें केवल सुपर कम्पुटर ही कर सकता हैं। 1998 में भारत में C – DEK द्वारा एक सुपर कंप्यूटर बनाया गया जिसका नाम “PARAM – 10000” था। इसकी गणना क्षमता 1 खरब गणना प्रति सेकंड थी। “PARAM – 10000” को भारत के विज्ञानिकों ने भारत में ही बनाया हैं। इसके अलावा अन्य सुपर कंप्यूटर भी हैं जैसे :- CRAY-2, CRAY XMP-24, और NEC-500.
ii) मेनफ़्रेम कंप्यूटर (Mainframe Computer)
Mainframe Computer, आकार में Super Computer की तुलना में काफी छोटे होते हैं। और इनकी Storage Capacity भी काफी अधिक होती हैं। इन कम्प्यूटर्स में अधिक मात्रा में बहुत ही तेज़ गति से डाटा को प्रोसेस करने की क्षमता होती हैं। ये computers बहुत तेज़ होने के कारण इनमे सेकड़ो users एक साथ कार्य कर सकते हैं। और इनमे 24 घंटे लगातार कार्य करने की क्षमता होती हैं। इसलिए इन कंप्यूटर का प्रयोग बड़ी बड़ी कंपनियों, सरकारी विभागों, बैंकों, इत्यादि, में केंद्रीय कंप्यूटर के रूप में किया जाता हैं।
Mainframe Computer को किसी भी नेटवर्क के साथ या माइक्रो कंप्यूटरो के साथ आपस में Connect किया जा सकता हैं। इन कंप्यूटर्स का उपयोग या प्रयोग विभिन स्थानों में विभिन कार्यों के लिए किया जा सकता हैं। जैसे :- बैंकों, कंपनी, नोटिस भेजना, बिल भेजना, टेक्स का विस्तृत ब्यौरा रखना, भुगतानों का ब्यौरा रखना, कर्मचारियों का भुगतान करना, बिक्री का ब्यौरा रखना, उपभोगताओं द्वारा खरीद का ब्यौरा रखना, इत्यादि। IBM 4381, ICL39 Series और CDC Cyber Series ये कुछ मेनफ़्रेम कंप्यूटर के नाम हैं।
मिनी कंप्यूटर, आकार में पिछले दोनों कंप्यूटरो की तुलना में काफी ज्यादा छोटे होते हैं। ये कंप्यूटर माइक्रो कंप्यूटर से अधिक तेज़ गति वाले होते हैं। सबसे पहला Mini Computer – PDP8 नामक था, जिसे DEC – Digital Equipment Corporation ने 1965 में तैयार किया था। जिसकी कीमत $18000 (Dollar) थी और आकार (Size) एक रेफ्रिजरेटर (Refrigerator) के बराबर थी।
मिनी कंप्यूटर की कीमत माइक्रो कंप्यूटर की तुलना में बहुत अधिक होती हैं। इन कंप्यूटर्स को व्यक्तिगत रूप से नहीं ख़रीदा जा सकता हैं। इनका प्रयोग छोटे और माध्यम आकार की कंपनी कर सकते हैं। इनमे भी कई व्यक्ति एक साथ एक समय में कार्य कर सकते हैं। इन कंप्यूटर्स में एक से अधिक CPU लगे होते हैं। मिनी कंप्यूटर की Speed माइक्रो कंप्यूटर से तेज़ पर मेनफ़्रेम कंप्यूटर से धीमी होती हैं। इन कंप्यूटर्स को यातायात में यात्रियों के आरक्षणके लिए, बैंकों में बैंकिंग के लिए, कर्मचारी के वेतन के लिए, वित्तीय खतों का रखरखाव करना, इत्यादि के उपयोग में लिया जाता हैं।
iv) माइक्रो कंप्यूटर (Micro Computer)
माइक्रो कंप्यूटर बाकी सभी कंप्यूटरो से आकार में बहुत छोटे होते हैं। जब 1970 के दसक में माइक्रो प्रोसेसर (Micro Processor) का अविष्कार हुआ, तब जा कर एक सबसे अच्छी और सस्ती कंप्यूटर प्रणाली का बनना संभव हुआ। माइक्रो प्रोसेसर के कारण इन कंप्यूटरो को किसी भी डेस्क (Desk) या ब्रिफ्केश (Briefcase) में भी रखा जा सकता हैं। इन छोटे कंप्यूटर को ही माइक्रो कंप्यूटर कहा जाता हैं।
माइक्रो कंप्यूटर कीमत में कम और आकार में बहुत छोटे होते हैं। इन कंप्यूटरो को कोई भी व्यक्तिगत रूप से खरीद सकता हैं। और व्यक्तिगत उपयोग के लिए घर या बाहर किसी भी स्थान या कार्य क्षेत्र में लगाया जा सकता हैं। इन कंप्यूटर्स को पर्सनल कंप्यूटर (Personal Computer) या PC भी कहा जाता हैं। व्यापर में माइक्रो कंप्यूटर का बहुत बड़ा महत्व हैं। व्यापर चाहे छोटी हो या बड़ी, हर प्रकार के व्यापर में माइक्रो कंप्यूटर का प्रयोग किया जाता हैं। इस कंप्यूटरो द्वारा पत्र व्यवहार के लिए पत्र तैयार करना, उपभोगताओं के लिए बिल बनाना, एकाउंटिंग, इत्यादि जैसे काम छोटे ब्यापार में किया जाता हैं। इसके अलावा बड़े व्यापार में Word Processing, फाइलिंग प्रणाली के संचालन के कार्य में उपयोगी होते हैं।
माइक्रो कंप्यूटर में बाकी कंप्यूटरो की भांति कई CPU नहीं लगे होते हैं। इनमे एक ही CPU (Central Processing Unit) होती हैं। आज जो कंप्यूटर आप अपने आसपास देख रहे हैं, इन्हें ही माइक्रो कंप्यूटर कहते हैं। आज आप माइक्रो कंप्यूटर को सरकारी विभाग के दफ्तरों, बैंकों, कंपनियों, दुकानों, इत्यादि स्थानों में देख सकते हैं। आज वर्तमान में माइक्रो कंप्यूटर का विकास बहुत तेज़ी से हो रहा हैं। जिसके परिणाम स्वरूप आज माइक्रो कंप्यूटर एक फ़ोन के आकार, पुस्तक के आकार और यहाँ तक कि एक घडी के आकार में भी आने लगे हैं।
रोचक तथ्य
>> चार्ल्स बैबेज (Charles Babbage) को कंप्यूटर के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए “आधुनिक कंप्यूटर विज्ञान का जनक” (Father of Modern Computer) जाता है।
>> आधुनिक कंप्यूटर के विकास में सर्वाधिक योगदान अमेरिका के डॉ. वान न्यूमेन (Van Neumann) का हैं। इन्हें डाटा और अनुदेश (Instructions) दोनों को बायनरी नंबर सिस्टम (0 और 1) में संग्रहित करने का श्रेय दिया जाता है।
>> ट्रांजिस्टर (Transister) का आविष्कार 1947 में बैल लैबोरेट्रीज (Bell Laboratories) के जॉन वॉडीन, विलियम शाकले और वाल्टर ब्रेटन ने किया। Semiconductor, सिलिकॉन (Si) या जर्मेनियम (Ge) का बना हुआ ट्रांजिस्टर एक तीव्र स्विचिंग डिवाइस है।
>> इंटीग्रेटेड सर्किट (IC) का विकास 1958 में जैक किल्बी (Jack Kilby) तथा रोबर्ट नोयी (Robert Noyce) द्वारा किया गया। सिलिकॉन की सतह पर बने इस प्रौद्योगिकी को माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक्स (Micro Electronics) का नाम दिया गया। यह सेमीकंडक्टर सिलिकॉन (Si) या जर्मेनियम (Ge) के बने होते हैं।
>> मूर के नियम (Moore’s Law) के अनुसार, प्रत्येक 18 महीने में चिप में उपकरणों (Devices) की संख्या दुगनी हो जाती हैं।
>> ULSI (Ultra Large Scale Integration) मैं एक चिप पर एक करोड़ इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बनाए जा सकते हैं।
>> आलू के चिप्स के आकार के होने के कारण इंटीग्रेटेड सर्किट (IC) को चिप (Chip) का नाम दिया गया।
>> Computer Manufacturing Industry में Famous होने के कारण Bangalore City सिलिकॉन वैली (Silicon Valley) के नाम से प्रसिद्ध है।
>> आईबीएम (IBM) के डीप ब्लू (Deep Blue) कंप्यूटर में शतरंज के विश्व चैंपियन गैरी कस्परोव को पराजित किया था। यह एक सेकंड में शतरंज की 20 करोड़ चालें सोच सकता है।